"श्री देवकीनंदन शान्त ' , महासचिव, बुन्देलखण्ड सहयोग परिषद्, लखनऊ" द्वारा प्रस्तुत कथन के अनुसार :
एक या डेढ़ वर्ष तक के बालक में नैसर्गिकता विद्यमान रहती है तब तक उनमें किसी भी प्रकार का अहंकार (EGO) नाम का तत्व नहीं होता जैसे कि अन्य जानवरों, पशु-पक्षियों इत्यादि में। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता - जाता है, प्रकृति द्वारा मनुष्य में निहित तत्वों के अंतर्गत अहंकार(EGO)स्वत: विकास के क्रम में पैदा हो जाता है। प्रारम्भ Functional(कार्यात्मक) EGO से होता है जो Fixnal EGO में Finally convert हो जाता है।
'Ego is a virtue which gives anybody a seperate identity(अहंकार एक गुण है जो किसी को एक अलग पहचान देता है ) !'
यह एक 'Undual Philosophy' है जिसे 'अद्वैत'कहकर इस प्रकार समझाने का प्रयास किया गया है कि We have to accept our Functionality till we become only ONE i.e, ONENESS covers our personality as a whole !(हमें अपनी कार्यक्षमता को स्वीकार करना होगा जब तक हम केवल एक ही बन जाते हैं, एकता पूरी तरह से हमारे व्यक्तित्व को शामिल करती है)
There r two type of EGOs :
1) Un-Enlightened EGO (अनजान अहंकार)&
2) Enlightened Ego ( प्रबुध्य अहंकार )
किसी भी व्यक्ति को जब तक यह ग्यात रहता है कि वह दूसरों से क्यों कर अलग है ? ऐसा Un-Enlightened व्यक्ति किसी भी समय Enlightened हो सकता है।बस वह Do-Er नहीं है,यह सच्चाई ग्यात होते ही।
यह अहंकार भी एक तत्व है , ऊर्जा है जिसे किसी भी सूरत से नष्ट किया ही नहीं जा सकता।हाँ, इसका ध्यान के अभ्यास द्वारा इसे हम रूपान्तरित करके ऐसा सन्तुलन स्थापित कर सकते हैं कि हम यह पूरी तरह जान लेते हैं कि हमारे द्वारा कोई है जो कार्य करवा रहा है,बस !
बुद्ध ने इसी को निर्वाण कह दिया।
संसार अथवा सन्यासी जैसी कोई बात नहीं है,यह सिद्धार्थ ने सन्यास लेने के बाद समझा।
"यूँ तो होते हैं समन्दर में क़तरे ही क़तरे सब ; क़तरा वही है कि जिसमें समन्दर दिखाई दे !!" -'नूर'
हम परमात्मा से अलग ही कहाँ हुए ? यह बात जानते हुए भी जो Un-Enlightened हैं ,उन्हें अपने आपको कर्ता मानना छोड़ना होगा,यही Seeker का उद्देश्य पूरा होगा।
जिस क्षण यह छोटी सी 'सूक्ष्म' लगने वाली बात समझ में आ जाएगी, EGO सन्तुलन बना लेगा,रूपान्तरित हो जाएगा,प्रसन्नता घेर कर बैठ जाएगी।"
श्री अनन्त श्री के अष्टमी (नव-रात्र) में दिए गये प्रवचन का सार ।१८.१०.१८
"सरल भाषा मे समझे तो अहंकारी व्यक्ति की आस्था उन तत्वों पर टिकी होती है जिनका अस्तित्व तात्कालिक और क्षणभंगुर है। ऐसा व्यक्ति सदैव अपनी आर्थिक क्षमता, सम्पदा, सामाजिक प्रतिष्ठा व आडम्बर को ही अपनी जीवन शैली बना लेता है। अहंकारी को लगता है कि उसके जैसा इस संसार में कोई नहीं है, केवल वही है जो सर्वश्रेष्ठ है। यही मूलभूत अंतर है आत्मविश्वास और अहंकार के वास्तविक अस्तित्व में।"
प्रश्न: Ego ( अहंकार) एक व्यक्ति विचार करता है कि उसके अंदर अहंकार नहीं है , तो इसके क्या लक्षण होते कि वह समझ सके कि उसके अंदर अहंकार है या नहीं? श्री गंगा प्रसाद दुलारया नागपुर
उत्तर : यही इसका प्रमाण है कि उसका विचार करना ही ये बताता है कि वह सबसे अलग दिखना चाहता है- यही तो अहंकार या EGO का सर्वप्रथम लक्षण है। विनम्र दिखना और विनम्र होने में बड़ा बारीक फ़र्क़ है।जो विनम्र होता है उसे इस बात की चिन्ता ही नहीं रहती कि कोई उसकी विनम्रता की ओर देखे भी ! इसी प्रकार अहंकार रहित व्यक्ति ये विचार ही नहीं करता कि वह समझे कि उसमें EGO की मात्रा अभी भी बची है क्या ? जिस क्षण ऐसे विचार उभरते हैं सावधानी की ज़रूरत है कि हम सहज, सरल और सादगी से भरे रहें - यही सबसे बड़ा लक्षण है जो हमारी छोटी सी बुद्धि में जन्मा है। शेष आपके सर्वाधिक नज़दीक जो भी गुरुवर या सद्गुरु हों वे अधिक प्रकाश डाल पाएँगे।" सादर -'शान्त',लखनऊ।
"सरल भाषा मे समझे तो अहंकारी व्यक्ति की आस्था उन तत्वों पर टिकी होती है जिनका अस्तित्व तात्कालिक और क्षणभंगुर है। ऐसा व्यक्ति सदैव अपनी आर्थिक क्षमता, सम्पदा, सामाजिक प्रतिष्ठा व आडम्बर को ही अपनी जीवन शैली बना लेता है। अहंकारी को लगता है कि उसके जैसा इस संसार में कोई नहीं है, केवल वही है जो सर्वश्रेष्ठ है। यही मूलभूत अंतर है आत्मविश्वास और अहंकार के वास्तविक अस्तित्व में।"
प्रश्न: Ego ( अहंकार) एक व्यक्ति विचार करता है कि उसके अंदर अहंकार नहीं है , तो इसके क्या लक्षण होते कि वह समझ सके कि उसके अंदर अहंकार है या नहीं? श्री गंगा प्रसाद दुलारया नागपुर
उत्तर : यही इसका प्रमाण है कि उसका विचार करना ही ये बताता है कि वह सबसे अलग दिखना चाहता है- यही तो अहंकार या EGO का सर्वप्रथम लक्षण है। विनम्र दिखना और विनम्र होने में बड़ा बारीक फ़र्क़ है।जो विनम्र होता है उसे इस बात की चिन्ता ही नहीं रहती कि कोई उसकी विनम्रता की ओर देखे भी ! इसी प्रकार अहंकार रहित व्यक्ति ये विचार ही नहीं करता कि वह समझे कि उसमें EGO की मात्रा अभी भी बची है क्या ? जिस क्षण ऐसे विचार उभरते हैं सावधानी की ज़रूरत है कि हम सहज, सरल और सादगी से भरे रहें - यही सबसे बड़ा लक्षण है जो हमारी छोटी सी बुद्धि में जन्मा है। शेष आपके सर्वाधिक नज़दीक जो भी गुरुवर या सद्गुरु हों वे अधिक प्रकाश डाल पाएँगे।" सादर -'शान्त',लखनऊ।
कहानी : अहंकारी व्यापारी और बुद्ध
एक बार मगध के व्यापारी को व्यापार में बहुत लाभ हुआ, अपार धन-संपत्ति पाकर उसका मन अहंकार से भर गया। उसके बाद से वह अपने अधीनस्थों से अहंकारपूर्ण व्यवहार करने लगा।व्यापारी का अहंकार इतना प्रबल था कि उसको देखते हुए उसके परिवार वाले भी अहंकार के वशीभूत हो गए। किंतु जब सभी के अहंकार आपस में टकराने लगे तो घर का वातावरण नरक की तरह हो गया।
वह व्यापारी दुःखी होकर एक दिन भगवान बुद्ध के पास पहुंचा और याचना करके बोला - भगवन्! मुझे इस नरक से मुक्ति दिलाइए। मैं भी भिक्षु बनना चाहता हूं।
भगवान बुद्ध ने गंभीर स्वर में कहा- अभी तुम्हारे भिक्षु बनने का समय नहीं आया है।
बुद्ध ने कहा- भिक्षु को पलायनवादी नहीं होना चाहिए। जैसे व्यवहार की अपेक्षा तुम दूसरों से करते हो, स्वयं भी दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। ऐसा करने से तुम्हारा घर मंदिर बन जाएगा।
घर जाकर उस व्यापारी ने भगवान बुद्ध की सीख को अपनाया और घर का वातावरण स्वतः बदल गया। अब सब अपने-अपने अहंकार को भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहने लगे। शीघ्र ही घर के दूषित वातावरण में नया उल्लास छा गया।
सीख : कभी भी अपने अहं के घमंड में दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करो, जो तुम्हें स्वयं के लिए पसंद न हो।
Very nice post
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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